किसान और विक्रमादित्य की कहानी
विक्रमादित्य उज्जैन के एक महान और शक्तिशाली राजा थे, वे अपने ज्ञान, वीरता, उदारशीलता और न्याय के लिए प्रसिद्द थे, उनके राज्य में सबको न्याय मिलता था।
विक्रमादित्य के समय उज्जैन का वैभव दूर – दूर तक फैला हुआ था, उनके राज्य में व्यापारी, किसान सब खुशहाल थे।
राजा विक्रमादित्य अक्सर अपने राज्य का भ्रमण करने अकेले ही घोड़े पर सवार हो निकल जाते थे। एक दिन हुआ की राजा विक्रमादित्य घोड़े पर सवार हो उज्जैन नगर देखने निकले हुये थे।
रास्ते में राजा विक्रमादित्य ने एक किसान को खेत में उदास बैठे देखा, राजा विक्रमादित्य को बहुत आश्चर्य हुआ की उनके राज्य में किसान उदास बैठा हुआ है।
वे किसान के पास गए और उन्होने पूछा आप यहाँ उदास क्यों बैठे हो बरसात आने वाली है, अब तो खेत में अनाज बोने का समय हैं।
किसान विक्रमादित्य पर क्रोधित हो गया, वह बोला अरे जाओ, कहीं के राजा धनी हो, तुम क्या जानो मेरी तकलीफ, मुझे क्रोधित मत करो।
विक्रमादित्य ने बड़ी ही विनम्रता से पूछा – मुझे आप बताये, आपकी क्या तकलीफ है, अगर मुझ से होगा तो आपकी मदद करूँगा अन्यथा हाथ जोड़कर माफ़ी मांग लूंगा।
किसान भावुक हो गया उसने कहा – क्या बताऊँ, इस ठण्डी के मौसम में मेरे बैल मर गये, अब में बिना बैल के कैसे अपना खेत जोत सकता हूँ, मेरे पास उतने पैसे नहीं की में अभी बैल खरीद सकता हूँ।
विक्रमादित्य ने कहा – बस इतनी सी बात हैं। आप इस धरती के किसान है, आपके कारण ही सबका पेट भरता हैं, लाइये आपका हल कहाँ है, में आपका हल खींचता हूँ।
किसान को विक्रमादित्य पर विश्वास नहीं हुआ, किसान को विश्वास दिलाने के लिए विक्रमादित्य ने किसान को एक बड़ा सा पत्थर उठाकर दिखाया और कहा में आपका हल को खींच सकता हूँ।
किसान ने अपना हल लाया और विक्रमादित्य किसान का हल खींचने लगे, सुबह से शाम को गयी लेकिन विक्रमादित्य ने बिना थके किसान का हल खींचते रहे।
शाम तक किसान ने अपना पूरा खेत जोत लिया, इधर राजा विक्रमादित्य के सेनापति और सैनिक उनके नहीं लौटने से चिंतित थे। वे विक्रमादित्य की तलाश में निकल पड़े।
उन्होने देखा की राजा विक्रमादित्य किसान के साथ बैठे हुये बातें कर रहे थे, सेनापति को पूरी बात समझते देर नहीं लगी।
सेनापति ने किसान से कहा – किसान तुम्हें ज्ञात है की ये कौन हैं…? और तुमने इनसे अपना हल खिंचवाया। ये विक्रमादित्य है।
किसान यह सुन चौंक गया, उसने विक्रमादित्य को प्रणाम किया और उनसे क्षमा मांगने लगा…विक्रमादित्य ने किसन को गले से लगा लिया।
विक्रमादित्य ने किसान को कुछ धन दिया और कहा की यह लीजिए इससे आप बीज खरीदना और खूब अच्छे से खेती करना आप किसान ही सबका पेट भरते हो आप महान हो और सबको किसान का सम्मान करना चाहिये।
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ऐसे थे विक्रमादित्य और उन्होने हमें यह सीख दिया है, इंसान कितना भी धनी क्यों नहीं हो लेकिन सबका पेट किसान ही भरता है, हमें चाहिए की हम किसान को सम्मान दें, उनका आदर करें और आज इसकी बहुत जयादा जरुरत भी हैं।
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