एक दानव था, उस दानव का एक बहुत ही बड़ा और सुन्दर बगीचा था। उसमें नरम, नरम घास की दरियाँ बिछी हुयी थी। क्यारियों में रंग बिरंगे फूल खिले हुये थे।
उसके बाद दानव ने बगीचे के चारों तरफ एक दीवार बना दी, और उसके ऊपर लिखवा दिया :- अंदर आना मना हैं।
छोटे बच्चों को अब सड़क पर ही खेलना पड़ता था। उन्हें बगीचे की बहुत याद आ रही थी।
कुछ दिन बाद वसंत ऋतु आयी, पेड़ों में नई कोपलें निकलने लगे, फूल खीलने लगे अब चारों ओर सुनहरी हवा बहने लगी।
लेकिन दानव के बगीचे के पेड़ उदास खड़े थे, फूल मुरझा गये, और घास भी सूखने लगी थी। अब दानव के बगीचे में कोई चिड़ियाँ नहीं आती थी।
दानव हमेशा सोचता कि कब बगीचे में वसंत ऋतु आयेगी। कब पेड़ों में फल लगेंगे, लेकिन वसंत दानव के बगीचे में नहीं आया, उसके सभी पेड़ उदास खड़े थे।
एक दिन दानव घर में लेटा हुआ था। अचानक उसके कान में किसी पक्षी के गाने की आवाज सुनायी दिया, वह झट से उठा और देखा कि एक चिड़ियाँ उसके खिड़की पर बैठी थी।
बहुत दिनों से दानव ने किसी पक्षी की आवाज नहीं सुनी थी। उसे चिड़ियाँ का संगीत अच्छा लग रहा था।
वह उठकर बगीचे में गया, दानव ने अपने बगीचे में एक अनोखा दृश्य देखा।
उसने देखा कि दीवार का एक कोना टूट चुका हैं। बच्चें उसके बगीचे में खेल रहे हैं। पेड़ों की पत्तियाँ बच्चों को देख झूम रही हैं।
उसका बगीचा बच्चों की खिलखिलाहट और चिड़ियों के चहकने से खिल उठा हैं।
लेकिन बगीचे का एक कोना अभी भी उदास था। वहाँ एक बहुत ही छोटा बच्चा था, वह पेड़ की डाली को पकड़ना चाहता था। पेड़ भी अपनी डाली झुकता, लेकिन बच्चा उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
यह देख उस दानव का हृदय पिघल गया। उसने कहा : में कितना स्वार्थी हूँ। मैंने इन बच्चों को बगीचे में खेलने से मना कर दिया था। जिससे मेरा पूरा बगीचा उदास हो गया था।
दानव उस छोटे बच्चें के पास गया। उसे आते देख बच्चें डर गये, लेकिन दानव ने प्यार से उस छोटे बच्चें को गोद में उठाया और उसे उस डाली पर बैठकर झुलाया।
बच्चें के झूलते ही वह पेड़ भी झूम उठा, अब उसका पूरा बगीचा झूम रहा था। दानव ने अपने बगीचे की दीवार दिया।
आज वहाँ से गुजरते लोगों ने देखा कि स्वार्थी दानव भी बच्चों के साथ खेल रहा था। सभी बच्चें उसके आस पास खेल रहे थे।
पेड़ पौध सभी झूम रहे थे, चिड़ियाँ गीत गा रही थी। सभी खुशी से हँस रहे थे, और सबसे तेज हँसी थी उस स्वार्थी दानव की थी।
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