बिल्ली और बंदर की कहानी
बच्चों चलिए आज बिल्ली और बंदर की कहानी पढ़ते हैं। नदी किनारे सूंदरपुर नाम का एक छोटा सा गांव था। उस गांव में दो बिल्लियाँ रहती थी, उन दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी।
वे साथ में खाना ढूँढने जाया करती थी और जो कुछ भी मिलता उसे आपस में बड़े ही प्यार से बाँट कर खाती थी।
एक दिन की बात हैं, दोनों बिल्लियाँ गांव में खाना ढूंढ रही थी, उन्हें एक किसान के घर से रोटी मिली, रोटी को देखकर दोनों बिल्लियाँ बहुत खुश हुयी।
उन्होंने रोटी को दो टुकड़ो में बाँट लिया और रोटी खाने के लिए एक पेड़ के निचे आयी, लेकिन उनमे से एक बिल्ली को उसकी रोटी का टुकड़ा छोटा लग रहा था।
वो दूसरी बिल्ली से बोली की मेरी रोटी का टुकड़ा छोटा हैं, तुम अपने टुकड़े में से थोड़ा मुझे दो।
लेकिन दूसरी बिल्ली को भी उसका टुकड़ा छोटा लग रहा था। अब दोनों बिल्लियाँ आपस में झगड़ने लगी।
वहाँ एक पेड़ पर एक बंदर बैठा इनकी बातें सुन रहा था, बंदर बोला : सुनो बिल्लियां , तुम्हें लगता हैं कि रोटी का टुकड़ा छोटा हैं तो में तराजू से उसे दोनों में बराबर भाग में बांट सकता हूँ।
बिल्लियाँ बंदर के नजदीक गयी और बोली : ठीक हैं, अब तुम्हीं इसे बराबर भाग में बांट दो।
बन्दर एक तराजू लाया और उसने दोनों टुकड़ों को तराजू के दोनों तरफ रखा और जैसे ही उसनें तराजू उठाया तराजू एक तरफ झुक गया।
बंदर ने उसे बराबर करने के लिए थोड़ा तोड़ा और खुद खा लिया। और वापस तराजू उठाया।
लेकिन इस बार तराजू दूसरी तरफ झुक गया, बंदर ने उसे बराबर करने के लिए फिर थोड़ा तोड़ खा लिया।
कुछ देर तक बंदर ऐसा करता गया और अब तराजू में छोटा सा टुकड़ा शेष रह गया था।
अब उन बिल्लियों से रहा नहीं गया, उन्होंने पूछा : तुम ये कैसा बंटवारा कर रहे हो, अब तो थोड़ी ही रोटी बची हैं।
इसपर बंदर ने कहा : ठीक हैं। लेकिन मैंने जो इतना मेहनत किया उसकी मजदूरी तो होगी।
इसलिए यह बची रोटी का टुकड़ा मेरा हुआ और बंदर तराजू में जो रोटी बची थी वो लेकर पेड़ पर चढ़ गया। दोनों बिल्लियाँ बस देखती रह गयी, उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला।
अब दोनों बिल्लियाँ यह समझ गयी की आपस में झगड़ा करने से अपना ही नुकशान होता हैं। इसका लाभ कोई अन्य उठाता हैं। बाद में उन्होंने कभी भी आपस में झगड़ा नहीं किया, और जो भी मिलता उसे बहुत ही प्यार से खाने लगी।
शिक्षा : देखा बच्चों इसलिए कभी भी आपस में झगड़ा नहीं करना चाहिए।
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